1815 में विलियम Úेजर ने टिहरी रियासत को सुदर्शन शाह को सौंप दिया। सुदर्शन शाह ने भागीरथी भिलंगना के संगम पर अपनी नई राजधानी टिहरी में स्थापित की। टिहरी राज्य की सीमा पूर्व में अलकनंदा पश्चिम में नेगवा परगना उत्तर मं हेलंग व दक्षिण में तपोवन पर्वत थी। कालांतर में रवाईं क्षेत्रा की टिहरी रियासत में सम्मिलित हो गयी।
टिहरी के राजा को प्रजा 'रज्जा' कहती थी। मंत्राी परिषद् कौंसिल कहलाती थी। राजा का न्यायालय हजूर कोर्ट कहलाता था। दीवान व वजीर दो उच्च पद थे, समस्त विभाग व कार्यालय वजीर के अधीन होते थे। सेना का मुख्याधिकारी आपफीसर कमांडिग कहलाता था। सुदर्शन शाह का राज्य चार ठाणों/थानों में बंटा हुआ था। ठाणों को पट्टियों में बांटा गया था।
1885ई0 में रियासत में वन विभाग की स्थापना हुई तथा आम जनता से वनकर व चराईकर वसूला जाता था। सुदर्शनशाह व भवानीशाह के समय तक शिक्षा की कोई उचित व्यवस्था नहीं थी। 1883 में प्रतापशाह द्वारा यहां पहला आधिकारिक विद्यालय स्थापित किया गया, किन्तु नए ढं़ग की शिक्षा व्यवस्था का प्रारम्भ कीर्तिशाह के समय आरम्भ हुआ।
सैन्य व्यवस्था का आरम्भ भवानी शाह के समय से मानी जाती है, इनके पश्चात् कीर्तिशाह ने गढ़वाली सैपर्स के नाम से पलटन स्थापित की।
राज्य में गढ़वाल व कुमायूँ क्षेत्रा के समान ही कुली उतार व कुली बरदायश जैसी कुप्रथाएं प्रचलित थी। कुली उतार छोटी बरदायश व कुली बरदायश बड़ी बरदायश कहलाती थी। बाद में इसे प्रभु सेवा का नाम दिया गया।
भूमिकर / लगान चैदह आना नकद रूप में निश्चित किया गया था। इसे मामला / रकमअदा कहा जाता था। अन्न के रूप में लिया जाने वाला लगान विसाही / बरा कहलाता था। इसके अतिरिक्त घी कर, रकम व देण-खेणऽ अन्य प्रमुख कर थे।
ऽ रकम / देण - खेणः राजपरिवार में मांगलिक कार्यों के समय लिया जाने वाला कर।
मादक पदार्थों पर चिलमकर व गंगाजल बेचने वालों पर रैका भवन कर लिया जाता था।
टिहरी रियासत में जन आन्दोलन
1930 तक टिहरी रियासत जन आन्दालनों से मुक्त रही, किन्तु इसके पश्चात् मुख्यतः वन कानून को लेकर जनआंदोलन आरम्भ हुए जो स्वतंत्राता आंदोलन तथा राष्ट्रीय नेताओं से प्रेरित होकर मुक्ति आंदोलन में परिवर्तित हो गया।
नयी वन व्यवस्था के अन्तर्गत चारागाह, खलिहान, लोगों द्वारा पशु बाधनें में प्रयुक्त स्थान भी वन सीमा में आ गए अतः इसके विरोध में लोग मुखरित होने आरम्भ हुए। रवाईं क्षेत्रा में हीरा सिंह, बैजाराम, दयाराम आदि के नेतृत्व में लोगों ने आजाद पंचायत की स्थापना की। साथ ही इन्होंने नयी वन सीमा को मानने से इन्कार कर दिया। उस दौरान इस क्षेत्रा के वनाधिकारी पद्मसिंह रतूड़ी ने आजाद पंचायत के नेताओं को गिरफ्रतार कर जेल में डाल दिया तथा जब आजाद पंचायत के सदस्य उन्हें छुड़ाने गए तो रतूड़ी ने अपनी रिवाल्वर से गोलियां चला दी जिसमें कुछ लोगों की मृत्यु हो गयी।
30 मई 1930 को यमुना के किनारे तिलाड़ी नामक स्थान पर आजाद पंचायत की बैठक हुई, उसी समय टिहरी रियासत का दीवान चक्रधर जुयाल सेना सहित वहां पहुंचा और सभा पर गोलियंा चलवा दी, जिसमें अनेक लोग हताहत हुए। इस घटना को टिहरी का जलियांवाला हत्याकांड कहा जाता है। और दीवान चक्रधर जुयाल को जनरल डायर की संज्ञा की जाती है।
राजा नरेन्द्रशाह उस समय राज्य में नहीं थे किन्तु लौटने के पश्चात् उन्होंने रतूड़ी व जुयाल को सजा देने की बजाए पकड़े गए आजाद पंचायत सदस्यों पर मुकदमें दायर कर दिए। इसके परिणामस्वरूप जनता के मन में स्वतंत्राता प्राप्ति की इच्छा और प्रबल हो गयी।
23 पफरवरी 1938 में देहरादून में टिहरी प्रजामण्डल की स्थापना हुई, श्रीदेव सुमन इसके संस्थापक थे। .................. श्रीदेव सुमन को गिरफ्रतार कर आगरा जेल भेज दिया गया। 1944 में उन्हें टिहरी जेल स्थानातंरित किया गया। जहां उन्होंने 84 दिन की भूख हड़ताल के पश्चात् प्राण त्याग दिए। इसके पश्चात् चंद्र सिंह गढ़वाली व आजाद हिन्द पफौज के सैनिक टिहरी पहुंचे जिससे जन आन्दोलन को अत्याधिक गति मिली।
1946 में भूमिकर, प्रभुसेवा कर, कुली बेगार आदि के विरू( टिहरी में आंदोलन आरम्भ हुआ तथा इसी के पश्चात् टिहरी प्रजामण्डल को राजदरबार से मान्यता प्राप्त हुई।
कीर्तिनगर को मुक्त करवाने के उद्देश्य से 10 जनवरी 1948 को विशाल जनसमूह ने नागेन्द्र सकलानी के नेतृत्व में कचहरी में राष्ट्रीय ध्वज पफहरा दिया, इसके पश्चात् हुई गोलीबारी में नागेन्द्र सकलानी व मालूराम शहीद हो गए। इसके पश्चात् आन्दोलन उग्र हो गया और नरेन्द्रशाह परिवार सहित नरेन्द्रनगर चले गए। 16 जनवरी 1948 को टिहरी रियासत आजाद पंचायत के अधिकार में आ गयी और अगस्त 1949 को टिहरी राज्य संयुक्त प्रांत में विलीन हो गया।