झुमैलो गीतः गढ़वाल क्षेत्रा में गाये जाने वाले झुमैलो गीत वेदना और प्रेम के प्रतीक हैं। इन गीतों में नारी हृदय की वेदना के साथ ही उसके रूप सौन्दर्य का वर्णन भी मिलता है।
बासन्ती गीतः गढ़वाल क्षेत्रा में बसन्त के आगमन पर किशोरियां फ्रयूंली के पफूलों को एकत्रित कर प्रातः घर-घर जाकर देहली पूजा करती हैं और बसन्त पंचमी के दिन दहेलियों और द्वारों पर चावलों के पीठे से चित्रा बनाकर गोबर से हरे जौ की गुच्छियां थाप कर लगायी जाती हैं।
होरी गीतः बसन्त के ही मौसम में यह गीत होली के दिन गाया जाता है।
बाजूबन्द नृत्य गीतः रंवाई-जौनपुर क्षेत्रा में गाया जाने वाला यह एक प्रणय या प्रेम नृत्य गीत हैं।
खुदेड़ गीतः पहले गढ़वाल में लड़कियों का विवाह बचपन में ही हो जाता है। ससुराल में उन्हें घर के सारे कार्य करने पड़ते थे तथा सास का भी अत्याचार सहना पड़ता था। अतः वे मायके की याद में खुदेड़ गीत गाती थी।
चैपफला गीतः यह एक प्रकार का प्रेम गीत है, जिसमें स्त्राी सौन्दर्य के वर्णन के साथ ही चारों प्रकार की कामनाएं ;धर्म, अर्थ, काम, मोक्षद्ध समाहित होती है।
कुलाचार या विरूदावलीः ये गीत राज्य में औजी जाति के लोगों द्वारा अपने ब्राह्मण-क्षत्रिय यजमान के ब्याही हुए कन्याओं के घर जाकर गाए जाते हैं।
चैमासा गीतः ये गीत वर्षा )तु में गाये जाते हैं, जिसमें अधिक वर्षा एवं प्रिय मिलन की आस रहती है।
बारामासाः गढ़वाल क्षेत्रा में पाये जाने वाले बारामासा गीत में बारहों महिनों के लक्षणांे ;जैसा मौसम, कौन-कौन पफूल, कैसा प्राकृतिक सौन्दर्य आदिद्ध का वर्णन होता है।
पट गीतः पट गीत उपदेशात्मक गीत होते हैं इसे छुड़ा गीत भी कहते हैं।
छोपती या छपेली गीतः विवाह या किसी उत्सव पर स्त्राी-पुरुष गोलाकार स्थिति में बैठकर प्रश्नोत्तर के रूप में गाये जाते हैं।
जागर गीतः वे लोकगाथाएं, जिनका सम्बन्ध पौराणिक व्यक्तियों या देवताओं से होता है, जागर कहलाते हैं। ये किसी धार्मिक अनुष्ठान, तंत्रा-मंत्रा, पूजा आदि के समय देवताओं या पौराणिक व्यक्तियों के आह्नान या समान में गाये जाते हैं। इसके गायक को जागरिये कहा जाता है। पाण्डव, कौरव, नरसिंह, भैरवनाथ, गोलू, करननाथ, गंगनाथ, मलयनाथ, बूढ़ाकेदार, गढ़देव, कालादेव, गढ़देवी आदि राज्य के प्रमुख जागर या जागर गीत हैं।
झोड़ा गीतः कुमाऊँ क्षेत्रा में माघ महिने में गाया जाना यह एक प्रमुख समूह नृत्य गीत है। स्त्राी-पुरुषों के श्रृंगारिक नृत्य वाला इस नृत्य-गीत का मुख्य गायक वृत्त के बीच में हुड़की बजाता हुआ गाता और नाचता है।
चांचरी ;भौनीद्धः यह भी इस क्षेत्रा का एक नृत्य गीत है, जिसमें स्त्राी-पुरुष दोनों भाग लेते हैं।
हुड़कि बोल गीतः कुमाऊँ क्षेत्रा के ये कृषि सम्बन्धी ;खरीपफ के समयद्ध गीत हैं। हुड़कि बोल का अर्थ है हुड़के के साथ किया जाने वाला श्रम। प्रमुख गायक विशेष वेशभूषा के साथ इस वाद्य पर थाप देते हुए गीत की एक पंक्ति गाता है। जिसे खेत में काम करने वाले लोग दुहराते हैं।
उत्तराखण्ड में गाए जाने वाले लोकगीत